बिहार की भयावह हकीकत—नहीं सुरक्षित मां का दूध,संकट में 6 जिलों के नौनिहाल
जिस दूध को एक मां अपने नवजात को पहली बार पिलाती है… जिसे ज़िंदगी की सबसे सुरक्षित, सबसे पवित्र शुरुआत माना जाता है…अगर उसी दूध में जहर घुल जाए, तो सोचिए—क्या किसी समाज के लिए इससे बड़ा हादसा हो सकता है?बिहार में यह डरावनी हकीकत अब किताबों या कल्पनाओं की बात नहीं रही। यह सच है… और बेहद .....
जिस दूध को एक मां अपने नवजात को पहली बार पिलाती है… जिसे ज़िंदगी की सबसे सुरक्षित, सबसे पवित्र शुरुआत माना जाता है…अगर उसी दूध में जहर घुल जाए, तो सोचिए—क्या किसी समाज के लिए इससे बड़ा हादसा हो सकता है?बिहार में यह डरावनी हकीकत अब किताबों या कल्पनाओं की बात नहीं रही। यह सच है… और बेहद कड़वा सच।
दूध में यूरेनियम
दरअसल प्रतिष्ठित साइंस जर्नल नेचर में पब्लिश एक स्टडी ने देश को हिला देने वाली जानकारी सामने रखी है। बिहार के छह जिलों में हर स्तनपान कराने वाली महिला के दूध में यूरेनियम पाया गया है। सोचिए… वह पहला घूंट जो बच्चे को दुनिया से जोड़ता है, वही उसे धीरे-धीरे तोड़ भी सकता है।यह कोई डेटा नहीं, यह एक चेतावनी है। यह उन मासूम सांसों की पुकार है, जिन्हें नहीं पता कि दुनिया में आते ही वे ज़हर निगल रही हैं।
स्तनपान कराने वाली महिला के दूध में यूरेनियम
बता दें कि प्रतिष्ठित साइंस जर्नल नेचर में छपी एक स्टडी में खुलासा हुआ है कि राज्य के छह जिलों में हर स्तनपान कराने वाली महिला के दूध में यूरेनियम पाया गया है। यह खोज सिर्फ वैज्ञानिक आंकड़ा नहीं, बल्कि उस भयावह सच्चाई की गूंज है कि जहर अब सीधे मां के आंचल के सहारे बच्चों के शरीर में प्रवेश कर रहा है। पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान के डॉक्टर अरुण कुमार और प्रोफेसर अशोक घोष की अगुवाई में नई दिल्ली एम्स के डॉक्टर अशोक शर्मा के सहयोग से अक्टूबर 2021 से जुलाई 2024 के बीच यह अध्ययन किया गया।
नमूनों में यूरेनियम (U238) मौजूद
इसके तहत भोजपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा में 17 से 35 वर्ष उम्र की कुल 40 महिलाओं के स्तन दूध के नमूने जांचे गए। चौंकाने वाली बात यह रही कि सभी नमूनों में यूरेनियम (U238) मौजूद पाया गया। यहां गौर करने वाली बात यह है कि किसी भी देश या संस्था की तरफ से मां के दूध में यूरेनियम की सुरक्षित सीमा निर्धारित नहीं की गई है, यानी वैज्ञानिक रूप से इसके लिए कोई भी मात्रा सुरक्षित नहीं मानी जाती।
भूजल प्रदूषण की समस्या
रिपोर्ट के मुताबिक,यहां भूजल प्रदूषण की समस्या अब नवजात बच्चों की पहली सांस और पहली बूंद तक पहुंच चुकी है। खगड़िया जिले में सबसे ज्यादा औसत प्रदूषण दर्ज हुआ, जबकि नालंदा में सबसे कम। कटिहार में एक नमूने में सबसे उच्च स्तर पाया गया। अध्ययन बताता है कि लगभग 70% शिशु ऐसे स्तर के संपर्क में आए जो गंभीर गैर-कैंसरजन्य स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि सबसे बड़ा खतरा उन बच्चों के लिए है, जिनके अंग अभी विकसित हो रहे हैं।उनका शरीर भारी धातुओं को जल्दी अवशोषित करता है और कम वजन होने के कारण जरा सी मात्रा भी कई गुना ज्यादा हानिकारक हो जाती है।
डॉक्टर अशोक शर्मा के अनुसार......
अध्ययन के सह-लेखक एम्स के डॉक्टर अशोक शर्मा के अनुसार, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यूरेनियम आखिर पानी तक पहुंचा कहां से। उन्होंने कहा, ‘हम स्रोत नहीं जानते। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया भी इसकी वजह का पता लगा रहा है। लेकिन यह तथ्य कि यूरेनियम फूड चेन में प्रवेश कर चुका है और कैंसर, न्यूरोलॉजिकल बीमारियों व बच्चों के विकास पर असर डाल रहा है, जो बेहद गंभीर चिंता का विषय है। वहीं वैज्ञानिकों ने स्पष्ट चेतावनी देते हुए भी यह भी कहा है कि मां का दूध बंद नहीं करें।यह बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता, विकास और सुरक्षा का सबसे महत्वपूर्ण आधार है।इसे सिर्फ और सिर्फ डॉक्टर की सलाह पर ही रोका जाना चाहिए। इसका मतलब साफ है— समस्या दूध में नहीं,समस्या उस पानी और जीवन में है, जो हम माताओं को दे रहे हैं।













