व्यावसायिक शिक्षा – समय की मांग

डॉ. सुमन कुमार सिंह की कलम से …   किसी भी देश के विकास में उस देश की शैक्षिक व्यवस्था तथा वहाँ के शिक्षण संस्थानों की अहम भूमिका होती है। वैसे तो शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शिक्षार्थियों के व्यक्तित्व व चरित्र का निर्माण करना होता है, परंतु भारत जैसे विशाल देश की जनसंख्या तथा बेरोजगारी […]

व्यावसायिक शिक्षा – समय की मांग

डॉ. सुमन कुमार सिंह की कलम से …

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किसी भी देश के विकास में उस देश की शैक्षिक व्यवस्था तथा वहाँ के शिक्षण संस्थानों की अहम भूमिका होती है। वैसे तो शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शिक्षार्थियों के व्यक्तित्व व चरित्र का निर्माण करना होता है, परंतु भारत जैसे विशाल देश की जनसंख्या तथा बेरोजगारी की दर पर गौर किया जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान समय में शिक्षार्थियों को व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा से जोड़ना नितांत जरूरी है। ऐसा करने से, जहाँ एक ओर शिक्षार्थियों को व्यावहारिक शिक्षा मिलेगी वहीं दूसरी ओर वे जीविकोपार्जन हेतु योग्यता प्राप्त करेंगे। व्यावसायिक शिक्षा को शिक्षा से जोड़ने का कार्य सबसे पहले कोठारी आयोग (1964-66) ने किया।

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एनसीएफ 2005 में भी व्यावसायिक शिक्षा की उपयोगिता को देखते हुए इसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, जिसे जुलाई 2015 में शुरू किया गया था, इस योजना का उद्देश्य ऐसे लोगों को प्रशिक्षित कर रोजगार उपलब्ध कराना है जो कम पढ़े-लिखे हैं या बीच में स्कूल छोड़ देते हैं तथा बड़े पैमाने पर कौशल का सृजन करना है ताकि युवाओं के बेहतर भविष्य का निर्माण हो सके। एनईपी 2020 में भी व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष जोर दिया गया है। यदि देश के सभी नागरिकों को देश की मुख्यधारा में लाना है तथा बेरोजगारी की दर को कम करना है, तो प्रत्येक व्यक्ति को व्यावसायिक शिक्षा से जोड़ना नितांत जरूरी है। वैसे, इन दिनों परंपरागत क्षेत्रों के अलावा भी अनेक क्षेत्रों में रोजगार की अपार संभावनाएं पैदा हुई हैं जैसे कम्प्यूटर नेटवर्क मैनेजमेंट, इवेंट मैनेजमेंट, टूर एंड ट्रेवल्स मैनेजमेंट इत्यादि।

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इतना तो स्पष्ट है कि यदि देश का हर व्यक्ति कौशलयुक्त हो जाए, तो भविष्य में हर व्यक्ति को रोजगार मिलने की उम्मीद की जा सकती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हर शिक्षार्थी को व्यावसायिक क्षेत्र से जोड़ा जाए तथा उन्हें इस काबिल बनाया जाए कि वे भविष्य की चुनौतियों का डटकर सामना कर सकें। इसके लिए सबसे पहले शिक्षण संस्थानों के संरचनात्मक ढांचे को सुदृढ़ करने की आवश्यकता होगी तथा वैसे क्षेत्रों को सूचीबद्ध करना होगा, जिसमें रोजगार की संभावनाएं मौजूद हों। सभी शिक्षण संस्थानों में कैरियर काउंसलिंग को अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित करना होगा ताकि शिक्षार्थियों को भविष्य की रूपरेखा बनाने तथा अपनी पसंद के क्षेत्र को चुनने का मौका मिल सके। एनईपी 2020 के अनुसार, 2025 तक कम से कम 50 फीसदी शिक्षार्थियों को स्कूल तथा उच्च शिक्षा के माध्यम से व्यावसायिक अनुभव प्राप्त होगा। यह तभी संभव होगा जब योजनबद्ध तरीके से संस्थागत ढांचे में सुधार कर आगे की रणनीति पर विचार किया जाए। व्यावसायिक शिक्षा को रोजगार की गारंटी के रूप में देखना ही काफी नहीं है, बल्कि इसे प्रत्येक शिक्षार्थी के जीवन से वास्तविक रूप से जोड़ना जरूरी है।

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(लेखक नवोदय नेतृत्व संस्थान, पुरी में अनुसंधान और प्रकाशन अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं..)