ये बिहार का सरकारी अस्पताल है भाई जहां अंधेरे में भी होता है मरीजों का इलाज

ये बिहार का सरकारी अस्पताल है भाई जहां अंधेरे में भी होता है मरीजों का इलाज

पटना डेस्क : बिहार के उप मुख्यमंत्री सह स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव सूबे की बेहद खराब स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने का कितना भी प्रयास करलें फायदा कुछ नहीं होना है | बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर आयेदिन हंगामा होता है और हंगामा होना लाजिमी है क्योंकि करोणों के महल सरीखे अस्पताल, आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित जरुर है, लेकिन अंदरखाने में बेहद गड़बड़ी है जिसका दंश रोज आम जन को झेलना होता है | आपको ले चलते हैं, औरंगाबाद जहां के अस्पताल की तस्वीर देख आप दंग रह जाएंगे |


औरंगाबाद सदर अस्पताल की व्यवस्था भगवान भरोसे है | स्वास्थ्य विभाग से लगायत सरकार तक, अस्पताल की व्यवस्था सुदृढ़ करने के लाख दावे क्यों न कर ले जमीनी हकीकत कुछ और ही बया कर रही है. इसकी बानगी आज रात्रि 9 बजे औरंगाबाद में देखने को मिली जब बिजली गुल हो जाने के बाद हिट वेब से ग्रसित मरीजों को मोबाइल की रोशनी में देखने के लिए चिकित्सकों को मजबूर होना पड़ा | हालांकि बिजली विभाग भी निर्बाध गति से बिजली आपूर्ति करने में असमर्थ हो रहा है | लेकिन अस्पताल का जेनरेटर की व्यवस्था का क्या हाल है जानने के लिए जब अस्पताल प्रबंधन से सवाल किया गया तो जवाब मिला कि इस भीषण गर्मी में जेनरेटर ने भी दम तोड़ दिया है | रात्रि में बिजली के कटने से अफरा-तफरी का माहौल उत्पन्न हो गया और हर तरफ अंधेरे ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया | सबसे ज्यादा परेशानी हीट स्ट्रोक के लिए बने वार्ड में थी जहां मरीजों को 24 घंटे एसी में रखना था लेकिन इस लचर व्यवस्था के कारण वहां एडमिट मरीजों को बहुत परेशानी है | हद तो ये है कि इस संबंध में अस्पताल के वरीय अधिकारी कुछ भी बोलने से बचते नजर आ रहे है |

अब सवाल है कि सरकार ने हर जिले में अस्पताल के लिए बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनवाई है अत्याधुनिक उपकरण भी लगवाए हैं बावजूद इतनी लचर व्यवस्था क्यों ? सूबे के मुख्य मंत्री से लगायत स्वास्थ्य मंत्री तक बड़े बड़े दावे करते हैं उन दावों का क्या जमीनी हकीकत है यह ?  उप मुख्यमंत्री सह तेजस्वी यादव को कई बार अस्पताल निरिक्षण करते देखा गया है जब गड़बड़ी पर उन्होंने सख्ती से सबको सुधार देने की चेतावनी भी दी है तो सवाल ये भी है की आप किस घडी के इंतज़ार में हैं ? कब सुधारेंगे इस जानमार व्यवस्था को ? सवाल तो बहुत है जिनका जवाब देना बेहद मुश्किल है |

रिपोर्ट : कुमार कौशिक / विकास कुमार