Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री व्रत कल, सुहागिन महिलाएं करेंगी पूजा, कृत्तिका नक्षत्र और शोभन योग का बन रहा संयोग

सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा-अर्चना करने का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। वहीं सोमवार यानी कल अखंड सौभाग्य की कामना से सुहागिन महिलाएं  वट सावित्री का व्रत करेंगी। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या में भरणी और कृत्तिका नक्षत्र का युग्म संयोग के ...

Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री व्रत कल, सुहागिन महिलाएं करेंगी पूजा, कृत्तिका नक्षत्र और शोभन योग का बन रहा संयोग

सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा-अर्चना करने का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। वहीं सोमवार यानी कल अखंड सौभाग्य की कामना से सुहागिन महिलाएं  वट सावित्री का व्रत करेंगी। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या में भरणी और कृत्तिका नक्षत्र का युग्म संयोग के साथ शोभन योग रहेगा। वट सावित्री व्रत को उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, दिल्ली और हरियाणा समेत कई जगहों पर मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जितनी उम्र बरगद के पेड़ की होती है, सुहागिनें भी बरगद के पेड़ की उम्र के बराबर अपने पति की उम्र मांगती हैं।

वट वृक्ष को देव वृक्ष माना गया हैं

बता दें कि वट वृक्ष को देव वृक्ष माना गया हैं। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पति प्रेम एवं पति व्रत धर्म का स्मरण करती हैं। महिलाएं वट वृक्ष को अक्षत, पुष्प, चंदन, ऋतुफल, पान, सुपारी, वस्त्र, धुप-दीप आदि से पूजा कर पंखा भी झलेंगी। वट सावित्री के दिन महिलाएं पूरे दिन उपवास करेंगी और सोलह श्रृंगार कर आंगन को अरिपन से लेप कर पति-पत्नी संग में वट की पूजा नियम-निष्ठा से करने के बाद चौदह बांस से निर्मित लाल-पीला रंग में रंगा हुआ हाथ पंखा से वट वृक्ष को हवा देंगी। 

आम और लीची की प्रधानता रहती है

बता दें कि इस पूजा में आम और लीची की प्रधानता रहती है। गुड्डा-गुड़िया को सिंदूर दान भी होगा। रंगे हुए घड़े में पूजन की दीपक प्रज्ज्वलित रहेगी। पूजा के बाद नव दंपति को बड़े-बुजर्ग महिलाएं धार्मिक व लोकाचार की कई कथाएं सुनाएगी। उसके बाद पांच सुहागिन महिलाएं नवविवाहिता के साथ खीर, पूरी व ऋतुफल का प्रसाद ग्रहण करेंगी। 

घर में सुख-समृद्धि का वास होता है

वहीं वट सावित्री का व्रत एवं इसकी पूजा व परिक्रमा करने से सुहागिनों को अखंड सुहाग, पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य वंश वृद्धि, दांपत्य जीवन में सुख-शांति तथा वैवाहिक जीवन में आने वाले कष्ट दूर होते हैं। पूजा के बाद भक्तिपूर्वक सत्यवान-सावित्री की कथा सुनना और वाचन करना चाहिए। इससे परिवार पर आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं तथा घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।

अंकुरित चने का आध्यात्मिक महत्व

इस व्रत में चने का बहुत महत्व है। भविष्य पुराण के अनुसार यमराज ने चने के रूप में ही सत्यवान के प्राण सावित्री को वापस दिए थे। सावित्री चने को लेकर सत्यवान के शव के पास आईं और चने को सत्यवान के मुख में रख दिया। इससे सत्यवान फिर जीवित हो गए थे। चना के प्राणदायक महत्व होने के कारण इसे वट सावित्री की पूजा में अंकुरित चना अर्पण किया जाता है।

वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि: दोपहर 11:02 बजे से पूरे दिन
अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11:20 बजे से 12:14 बजे तक
गुली काल मुहूर्त: दोपहर 01:28 बजे से शाम 03:10 बजे तक
चर-लाभ-अमृत मुहूर्त: दोपहर 01:28 बजे से शाम 06:32 बजे तक