भारत नेपाल बॉर्डर पर एक ऐसा प्राचीन दुर्गा मंदिर जहां होती है सबकी मुरादें पूरी

भारत नेपाल बॉर्डर पर एक ऐसा प्राचीन दुर्गा मंदिर जहां होती है सबकी मुरादें पूरी

पटना डेस्क : अररिया जिले के भारत-नेपाल सीमा के करीब बसा हुआ है कुर्साकांटा प्रखंड का कुआडी पंचायत। इसी कुआडी बाजार में स्थित है सार्वजनिक दुर्गा मंदिर। इस मंदिर में विराज रही माँ दुर्गा की स्थापना की जानकारी तो सही तरीके से किसी के पास नहीं है लेकिन यहां के बुजुर्गों का कहना है कि इस मंदिर की स्थापना लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले हुई थी। तभी से इस मंदिर की ख्याति लगातार बढ़ती जा रही थी। भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली आदिशक्ति माँ दुर्गा देवी के दर्शन के लिए दूर दराज के श्रद्धालु भी आते हैं। मंदिर प्रबंध समिति की माने तो नेपाल के श्रद्धालुओं का माँ में बहुत आस्था है। 

यहां के पुजारी पंडित ज्ञानमोहन मिश्र का कहना है कि ये दुर्गा मंदिर शक्तिपीठ के साथ मनोकामना सिद्ध पीठ के रूप में विख्यात है। उन्होंने बताया कि वैसे तो सार्वजनिक दुर्गा मंदिर में मां शक्ति की पूजा अर्चना कब से हो रही है इसकी प्रामाणिक जानकारी नहीं है लेकिन जानकारों की माने तो मंदिर में शक्ति की पूजा अर्चना लगभग डेढ़ सौ वर्षों से की जा रही है। ये जानकारी स्थानीय लोगों से मिल रही है की शुरुआती काल में घास फूस के बने मंदिर में पूजा अर्चना होती थी। जिसे स्थानीय लोगों के सहयोग से मंदिर में टीना का छत बनाया गया था। वहीं काफी दिनों के बाद सार्वजनिक दुर्गा मंदिर की बढ़ती ख्याति व श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होने की चर्चा जोरों पर होने लगी तो स्थानीय लोगों के सहयोग से मंदिर का छत बनाया गया।

मंदिर में पूर्व में शारदीय नवरात्र की नवमी को बलि प्रदान की प्रथा थी। जिसे कालांतर में लगभग 15 वर्ष पहले स्थानीय लोगों की आपसी सहमति व पूजा समिति के प्रयास से बंद कर दी गई है, तब से मंदिर में बलि प्रथा पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगी है। तबसे मंदिर में वैष्णव पद्धति से पूजा अर्चना की जा रही है। नवरात्र के पूर्व से ही मंदिर की रौनक बढ़ जाती है। एक तरफ मूर्तिकार मां शक्ति की प्रतिमा का निर्माण में लगे रहते हैं तो दूसरी तरफ पूजा समिति द्वारा नवरात्र को बेहतर तरीके से संपन्न करने को लेकर प्रयासरत रहते हैं।  पूजा कमेटी के अध्यक्ष ने बताया कि हम लोग मंदिर के पास वाले तालाब में ही प्रतिमा का विसर्जन कर देते हैं। यहां प्रतिमा को भ्रमण करने की प्रथा नहीं है। इसलिए पास के तालाब में इसे विसर्जित किया जाता है।

रिपोर्ट : कुमार कौशिक