पटना में दुर्गा पूजा की रौनक, मूर्ति निर्माण में जुटे कारीगर ,पर्यावरण के अनुकूल परंपरा कायम

जैसे-जैसे त्योहारों का मौसम करीब आ रहा है, राजधानी पटना का माहौल भक्ति और उत्साह से सराबोर हो चुका है। दुर्गा पूजा 2025 की तैयारियां पूरे शहर में तेज हो गई हैं। कुर्जी मोड़, चूड़ी बाजार, डाकबंगला और बंगाली अखाड़ा जैसे इलाकों में कारीगर मां दुर्गा की प्रतिमाओं को दिन-रात गढ़ने में जुटे हैं।कई मूर्तियों पर मिट्टी की पहली परत चढ़ चुकी है और मां दुर्गा के चेहरे के हाव भाव आकार लेने लगे हैं। प्रतिमा निर्माण की यह पूरी प्रक्रिया न सिर्फ कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि...........

पटना में दुर्गा पूजा की रौनक, मूर्ति निर्माण में जुटे कारीगर ,पर्यावरण के अनुकूल परंपरा कायम

जैसे-जैसे त्योहारों का मौसम करीब आ रहा है, राजधानी पटना का माहौल भक्ति और उत्साह से सराबोर हो चुका है। दुर्गा पूजा 2025 की तैयारियां पूरे शहर में तेज हो गई हैं। कुर्जी मोड़, चूड़ी बाजार, डाकबंगला और बंगाली अखाड़ा जैसे इलाकों में कारीगर मां दुर्गा की प्रतिमाओं को दिन-रात गढ़ने में जुटे हैं।कई मूर्तियों पर मिट्टी की पहली परत चढ़ चुकी है और मां दुर्गा के चेहरे के हाव भाव आकार लेने लगे हैं। प्रतिमा निर्माण की यह पूरी प्रक्रिया न सिर्फ कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि कारीगरों की मेहनत और समर्पण को भी दर्शाती है।

पर्यावरण संरक्षण पर जोर
बता दें कि उनकी दिन-रात की लगन ही आने वाले दिनों में पूजा पंडालों को जीवंत और आकर्षक बनाने वाली है। दरअसल पटना में प्रतिमा निर्माण हमेशा से पर्यावरण के अनुकूल परंपरा के साथ किया जाता है।गंगा और खेतों की मिट्टी, सरकंडा, पटवा और भूसा से मूर्तियां तैयार की जाती हैं। खास बात यह है कि पटवा पानी में आसानी से गल जाता है।रंगों के लिए भी केवल पानी से बने रंगों का उपयोग किया जाता है ताकि विसर्जन के बाद नदी को कोई नुकसान न पहुंचे। इतना ही नहीं टिकाऊपन के लिए कारीगर चाय पत्ती का पाउडर और इमली के बीज तक का इस्तेमाल करते हैं। तेल वाले पेंट और केमिकल रंगों का उपयोग पूरी तरह से टाला जाता है ताकि पूजा के बाद भी नदी और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।

परंपरा और आधुनिकता का संगम
बता दें कि  इस बार मां का मुकुट और सजावट का सारा सामान बंगाल से लाया गया है।  पटना के बोरिंग कैनाल रोड पर इस बार 14 फीट ऊंची पंचमुखी प्रतिमा तैयार की जा रही है। मूर्तियों का शृंगार और रंग हमेशा की तरह बंगाल से ही लाए जाते हैं। अंत में मां दुर्गा के नयन-नक्श गढ़े जाते हैं, जो प्रतिमाओं को जीवंत बना देते हैं।कारीगरों का कहना है कि इमली के बीज और प्राकृतिक सामग्री से बनी मूर्तियां पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ होती हैं। यही वजह है कि आज भी पटना में दुर्गा पूजा की तैयारी में पुरानी परंपरा और आधुनिकता का अनोखा संगम देखने को मिलता है।