नवरात्र 2025 का चौथा दिन: 9 साल बाद खास संयोग, दो दिन होगी मां कुष्मांडा की पूजा

आज शारदीय नवरात्र का चौथा दिन है। आश्विन मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। इस बार की चतुर्थी विशेष महत्व रखती है, क्योंकि यह दो दिन (25 और 26 सितंबर) तक रहने वाली है। पूरे 9 साल बाद ऐसी स्थिति बनी है, जब चतुर्थी तिथि दो दिनों तक जारी रहेगी।नवरात्र के चतुर्थ दिवस पर इस बार स्वाति नक्षत्र, वैधृति योग और रवियोग का संयोग बन रहा है। इसे पूजा-पाठ और व्रत के लिए अत्यंत शुभ माना जा रहा है।इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा के साथ-साथ विनायक चतुर्थी....

नवरात्र 2025 का चौथा दिन: 9 साल बाद खास संयोग, दो दिन होगी मां कुष्मांडा की पूजा

आज शारदीय नवरात्र का चौथा दिन है। आश्विन मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। इस बार की चतुर्थी विशेष महत्व रखती है, क्योंकि यह दो दिन (25 और 26 सितंबर) तक रहने वाली है। पूरे 9 साल बाद ऐसी स्थिति बनी है, जब चतुर्थी तिथि दो दिनों तक जारी रहेगी।नवरात्र के चतुर्थ दिवस पर इस बार स्वाति नक्षत्र, वैधृति योग और रवियोग का संयोग बन रहा है। इसे पूजा-पाठ और व्रत के लिए अत्यंत शुभ माना जा रहा है।इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा के साथ-साथ विनायक चतुर्थी व्रत का भी महत्व है। आश्विन मास की इस विनायक चतुर्थी पर मां दुर्गा के साथ उनके पुत्र भगवान गणेश की पूजा करना अत्यंत फलदायी है।

चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए,
आज विनायक चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त दिन में 11:00 बजे से है। बता दें कि आज के दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए, इससे झूठा कलंक लगता है। जो लोग विनायक चतुर्थी का व्रत रखकर गणेश जी की पूजा करते हैं, उनके कार्य सफल सिद्ध होते हैं। उनके जीवन और कार्य में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और शुभता आती है।कुष्मांडा देवी को सृष्टि की आदि शक्ति माना जाता है। मान्यता है कि जब चारों ओर घोर अंधकार था और सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब देवी ने अपनी हल्की हंसी से ब्रह्मांड की रचना की। इसी कारण उनका नाम कूष्मांडा पड़ा।

देवी सृष्टि की आदि-शक्ति मानी जाती हैं
कूष्मांडा देवी सृष्टि की आदि-शक्ति मानी जाती हैं। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व ही नहीं था। देवी का निवास सूर्य मंडल के भीतर माना जाता है। यह शक्ति केवल उन्हीं के पास है कि वे सूर्यलोक में स्थित रह सकें। इनके शरीर की आभा स्वयं सूर्य के समान है। अन्य कोई देव या देवी इनके तेज की तुलना नहीं कर सकता। दसों दिशाएँ उनके ही प्रकाश से आलोकित होती हैं।

देवी अष्टभुजा धारी हैं
देवी अष्टभुजा धारी हैं। सात हाथों में कमंडलु, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा धारण करती हैं।आठवें हाथ में जपमाला है, जिसे सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली माना जाता है।इनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।मां कुष्मांडा की आराधना से भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्ति मिलती है। वे आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं।यदि बार-बार प्रयास करने के बावजूद मनचाहा फल न मिल रहा हो, तो इस स्वरूप की आराधना से सभी बाधाएं दूर होकर सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

एक भरा-पूरा गोल कद्दू न काटें
बस आज के दिन साधक को खासकर महिलाओं के ध्यान रखने की जरूरत है कि भूल से भी एक गलती न हो जाए, वरना उनका व्रत खंडित हो सकता है।महिलाओं को ध्यान रखना है कि वह आज के दिन अपने हाथ से चाकू लेकर एक भरा-पूरा गोल कद्दू न काटें। इसके साथ ही देवी कुष्मांडा के ही नाम का एक और कद्दू जैसा फल होता है। स्थानीयस्तर पर इसे भतुआ (पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ गांव) कहते हैं, कुछ लोग इसे पेठा का फल भी कहते हैं।ऐसा इसलिए क्योंकि इस कुष्मांडा फल से ही पेठा नामकी मिठाई बनती है, जिसका भोग देवी को प्रिय भी है।

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥