क्या कांग्रेस को अभी भी नीतीश पर नहीं हो रहा भरोसा, विपक्षी एकता की बैठक पर बड़ा सवाल

क्या कांग्रेस को अभी भी नीतीश पर नहीं हो रहा भरोसा, विपक्षी एकता की बैठक पर बड़ा सवाल

पटना डेस्क : लोक सभा चुनाव से पहले सीएम नीतीश कुमार भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने की कोशिश में जुट चुके हैं। इसे लेकर 12 जून को पटना में विपक्षी एकता की बैठक भी बुलाई गई थी, जो टल गई। कहीं न कहीं विपक्षी एकता की बैठक में शामिल होने को लेकर भाजपा विरोधी दलों के बीच सस्पेंस बना हुआ है।

इसे लेकर महागठबंधन के बीच लगातार मंथन भी चल रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प हो जाता है कि बैठक टलने के बाद सभी विरोधी दलों को एक मंच पर लाना सीएम नीतीश के लिए कितना मुश्किल है।

बता दें कि राहुल गांधी विदेश में हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी अगले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में व्यस्त हैं। ऐसे में अब बस इंतजार है तो बैठक की अगली तारीख का...।

बताया जा रहा है कि कांग्रेस के अंदर भी इस बैठक को लेकर मंथन चल रहा है। पार्टी कहीं न कहीं ये सोच कर चल रही है कि नीतीश कुमार पर भरोसा करना ठीक नहीं होगा...।

दरअसल, नीतीश कुमार बार-बार अपना पलरा बदल लेते हैं। वे कभी NDA तो कभी महागठबंधन के बीच झूलते रहते हैं। कांग्रेस को इसी बात का डर है।

पार्टी को लगता है कि अगर अगले लोकसभा चुनाव में जदयू मजबूत स्थिति में होती है और नीतीश कुमार को लगेगा कि उन्हें बीजेपी या राजद के साथ रहने में फायदा है तो वह कांग्रेस का साथ छोड़ भी सकते हैं।

नीतीश कुमार BJP और RJD के बीच इतनी बार घूम चुके हैं कि किसी भी पार्टी के लिए उन पर भरोसा करना मुश्किल हो गया है । वे कब किधर जाएंगे, ये बात सिर्फ सीएम नीतीश ही जानते हैं।

एक्पसर्ट के मुताबिक, कांग्रेस पार्टी को इस बात का भी डर है कि विपक्षी एकता की बैठक हो जाए। लोकसभा जीत भी जाएं, लेकिन जब सरकार बनाने की नौबत आए तो कहीं नीतीश कुमार अलग राह न पकड़ लें। इस वजह से कांग्रेस आशंकित है

दूसरी बात यह है कि कांग्रेस में अपनी ही पार्टी के अंदर कई तरह के मतभेद है। पार्टी में अंतर्विरोध और संदेह है कि विपक्षी एकता के मद्देनजर भाजपा विरोधी दलों के साथ गठबंधन बनाना कितना फायदेमंद होगा और कितना नुकसानदेह है।

कांग्रेस की आज जो स्थिति है, वह क्षेत्रीय दलों के कारण ही हुई है। क्षेत्रीय दलों ने ही अपने-अपने प्रदेश में उसे सत्ता से बेदखल कर दिया है। कांग्रेस अभी सिर्फ 4 राज्यों में ही सिमटी हुई है। एक समय था जब पूरे देश में उसका राज था।

कई राज्यों में तो वहां की क्षेत्रीय दलों से अब कांग्रेस की बात तक नहीं होती। इसका सबसे पहला उदाहरण राजधानी दिल्ली है, जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है। दिल्ली में सीएम अरविंद केजरीवाल से कांग्रेस पार्टी के बीच राजनीतिक लड़ाई किसी से छिपी नहीं है।

इसी कड़ी में अगला नाम तेलंगाना के सीएम केसीआर का भी आता है। केसीआर हमेशा से कांग्रेस के खिलाफ बोलते रहे हैं। वहीं, आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी भी कांग्रेस के विरोध में हैं।

 

 

नीतीश कुमार ने बहुत बड़ा रिस्क लिया

इधर बात करें बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की तो उन्होंने ऐसे समय में कांग्रेस के एक विधायक को अपनी पार्टी में मिलाया है, जब पूरे देश में विपक्षी एकजुटता की चर्चा है। कांग्रेस भीतर से डरी हुई है कि जिन विपक्षी दलों ने हमको सत्ता से बेदखल कर दिया है, उनके साथ जाना फायदे का सौदा होगा या घाटे का। पार्टी इसे लेकर भी काफी असमंजस की स्थिति में है। इसे लेकर पार्टी में मंथन का दौर चल रहा है। इस मामले में नीतीश कुमार ने बहुत बड़ा रिस्क लिया है। काफी हद तक वे इसमें सफल भी हुए हैं।

लेकिन यह सफलता तभी मिलेगी, जब कांग्रेस पूरे मन से नीतीश के साथ हो। कांग्रेस ये समझने की कोशिश कर रही है कि बिहार के बाहर नीतीश कुमार का क्या जनाधार है। पार्टी को मालूम है कि सीएम नीतीश कांग्रेस के भरोसे नैय्या पार लगाना चाहते हैं।

 

 

नीतीश की क्रेडिबिलिटी का जवाब मिलेगा

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता असितनाथ तिवारी का कहना है कि  असमंजस किसको है। यह हम नहीं जानते। कांग्रेस को किसी तरह का असमंजस नहीं है, क्योंकि हम तो सीधी लड़ाई बीजेपी से लड़ रहे हैं। इस लड़ाई में जो हमारे साथ खड़ा होना चाहता है। हम उसका स्वागत कर रहे हैं। नीतीश कुमार अगर हमारे साथ खड़ा होने चाहते हैं तो हम उनका स्वागत क्यों न करें। नीतीश की क्रेडिबिलिटी से जुड़े सवाल पर असित नाथ तिवारी इसे एक उदाहरण से समझाते हैं।

वे कहते हैं कि भाजपा से क्रेडिबिलिटी का सवाल क्यों नहीं पूछा जाता। क्योंकि जिस भाजपा ने कश्मीर में महबूबा मुफ्ती से कहा कि कश्मीर में आतंकवाद के लिए ये जिम्मेवार हैं। ये पाकिस्तानियों से मिले हुए हैं।

वहीं, अमित शाह महबूबा के साथ गठबंधन कर सरकार बना रहे थे। क्या ये क्रेडिबिलिटी का सवाल नहीं है कि शिवसेना पर जब आरोप लगाया कि पिता-पुत्र हफ्ता वसूली करते हैं। उन्होंने कहा कि किसकी क्रेडिबिलिटी बची है। 

 

रिपोर्ट : कुमार कौशिक / अमित कुमार पाण्डेय