बिहार और सासाराम की घटना के बाद क्यों उठ रहे हैं नीतीश कुमार पर सवाल, क्यों याद आ रहे रहे लालू यादव
बिहार और सासाराम की घटना के बाद क्यों उठ रहे हैं नीतीश कुमार पर सवाल, क्यों याद आ रहे रहे लालू यादव
देसवा स्पेशल
लालू से क्यों मात खा गए नितीश , आज इस बात की चर्चा क्यों जबकि दोनों आज एक साथ मिलकर सरकार चला रहे है , बिहारशरीफ और सासाराम में दो समुदाय के बिच दंगा की खबरों ने बिहार की छवि को फिर से एक बार नुक्सान पहुंचाया है , घटना में प्रशाशनिक विफलता साफ़ दिखी , नितीश कह रहे है दोषियों को नहीं छोड़ा जायेगा , नितीश कुमार पर यह भी आरोप लग रहे है की सीएम होते हुए भी जितनी तत्परता उन्हें दिखानी चाहिए थी उनोन्हे नहीं दिखाई, खुद वह घटनास्थल पर नहीं गए लालू हो या नितीश दोनों की छवि सेकुरल नेता की रही है लेकिन इस तरह की घटना होने के बाद जिस तरह की तत्परता लालू यादव दिखाते थे उसकी कमी नितीश में साफ़ देखी गई
जब लालू ने कहा था एक मुसलमान के लिए 10 यादव कुर्बान
लालू प्रसाद को राजनीति के लिए यादव और मुस्लिम दोनों की जरूरत रही और वे येन केन प्रकारेन दोनों को ही संतुष्टि के रथ पर चढ़ाते भी रहे। आपको थोड़ा पीछे ले चलते है वर्ष 1992, जब सीतामढ़ी में उपद्रव हुआ था। सीतामढ़ी में उपद्रव के कारण दो गुटों में हिंसा भड़क गई थी। इस हिंसा में 65 लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हो गए थे। ऐसे में लालू प्रसाद का आक्रामक अंदाज सामने आया। उन्होंने स्थानीय विधायक शाहिद अहमद खान के एक फोन पर उपद्रव पर काबू पाने के लिए सीतामढ़ी कैंप करने का मन बना डाला। मीडिया के सामने लालू यादव ने अपने अंदाज में कहा था मुस्लिमों को बचाने की जिम्मेवारी यादवों की है और एक मुस्लिम को बचाने में 10 यादव भी शहीद हो जाएं तो कोई बात नहीं। तब उन्होंने एक हेलीकॉप्टर का इंतजाम किया और सीतामढ़ी निकल गए। थोड़ी कम ऊंचाई पर जब हेलीकॉप्टर सीतामढ़ी के ऊपर उड़ रहा था, लालू प्रसाद ने लोगों को हथियारों से लैस देखा। उन्हें समझने में देर नहीं लगी। हेलीकॉप्टर से उतरने के पहले खुली जीप मंगवाई और वे उस पर खुद सवार हो गए और मेगाफोन से घोषणा करने लगे कि 'कर्फ्यू लग गया है। घर में घुस जाओ। जो दिखेगा पुलिस उसकी गोली मार देगी।' लोग तो ये भी कहते हैं कि लालू यादव ने फोर्स से हवाई फायरिंग करने को कहा। इसका भरपूर असर हुआ। लोग घरों के अंदर चले गए। उपद्रव पर नियंत्रण हो गया। बावजूद इसके लालू प्रसाद कई दिन तक वहां रहे और राहत और पुनर्वास के मामले की मॉनिटरिंग भी की।
आडवाणी को गिरफ्तार करना
किस्सा साल 1990 का है. जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा जोर पकड़ रहा था. इसी बीच लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक 'रथयात्रा' निकालने की घोषणा कर दी थी. इस रथयात्रा के प्रबंधन की जिम्मेदारी मिली थी देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इधर आडवाणी रथ पर सवार थे और उधर बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दिलो-दिमाग में कुछ और चल रहा था. उन्होंने बिहार में लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोकने की ठान ली थी और इसके लिए पूरा प्लान बना लिया गया. आडवाणी की रथयात्रा धनबाद से शुरू होने वाली थी और उन्हें सासाराम के नजदीक गिरफ्तार करने की योजना थी. हालांकि यह योजना लीक हो गई. बाद में धनबाद में गिरफ्तारी का प्लान बना, लेकिन अधिकारियों के बीच मतभेद के बाद यह योजना भी खटाई में पड़ गई. इस बीच आडवाणी की यात्रा का एक पड़ाव समस्तीपुर भी था. लालू यादव उन्हें यहां हर हाल में गिरफ्तार करना चाहते थे. लालकृष्ण आडवाणी समस्तीपुर के सर्किट हाउस में रुके थे और लालू यादव ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि उन्हें कहीं न जाने दिया जाए.25 सितंबर को सोमनाथ से शुरू हुई आडवाणी की रथयात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचनी थी, लेकिन 23 अक्टूबर को आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया
ये लालू यादव का अंदाज था जो की अग्रेसिव था लेकिन वहीँ बात अगर नीतीश कुमार की जाए तो वह इन सब मामलो को प्रसाशन पर छोड़ देते है और उनसे जो फीड बैक मिलता है उसके हिसाब से एक्शन लेते है और यही कारण है की यह कहा जा रहा है अगर बिहार शरीफ और सासाराम में जो मामला हुआ उसमे अभी तक कई पुलिस वाले लालू यादव के कोपभाजन का शिकार हो जाते