बिना चुनाव लड़े मंत्री बने दीपक प्रकाश पर बवाल, उपेंद्र कुशवाहा ने शायराना अंदाज में दी प्रतिक्रिया
बिहार की नई सरकार के गठन के बाद से ही उपेंद्र कुशवाहा के बेटे और नव नियुक्त मंत्री दीपक प्रकाश लगातार सुर्खियों में हैं। बिना चुनाव लड़े ही मंत्री बनाए जाने पर विपक्ष ही नहीं, बल्कि एनडीए के कुछ समर्थक भी इसे खुलकर परिवारवाद बता रहे हैं।विवाद बढ़ता देख राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा सोशल मीडिया के जरिए सामने आए। उन्होंने कहा कि वे सभी प्रतिक्रियाओं..........
बिहार की नई सरकार के गठन के बाद से ही उपेंद्र कुशवाहा के बेटे और नव नियुक्त मंत्री दीपक प्रकाश लगातार सुर्खियों में हैं। बिना चुनाव लड़े ही मंत्री बनाए जाने पर विपक्ष ही नहीं, बल्कि एनडीए के कुछ समर्थक भी इसे खुलकर परिवारवाद बता रहे हैं।विवाद बढ़ता देख राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा सोशल मीडिया के जरिए सामने आए। उन्होंने कहा कि वे सभी प्रतिक्रियाओं को देख रहे हैं। कुछ सकारात्मक…कुछ आलोचनात्मक लोकतंत्र में स्वस्थ आलोचना जरूरी है, लेकिन कुछ टिप्पणियां पूर्वाग्रह और द्वेष से भरी होती हैं।
आलोचनाओं पर कुशवाहा का भावुक पोस्ट
इसी संदर्भ में राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने सोशल मीडिया पर एक भावुक और शायराना पोस्ट लिखकर अपने फैसले का बचाव किया है। शायराना अंदाज में उन्होंने लिखा है- सवाल ज़हर का नहीं था, वो तो मैं पी गया,तकलीफ उन्हें तो बस इस बात से है कि मैं फिर से जी गया। यह पंक्ति सीधे तौर पर उनकी मजबूरी और राजनीतिक परिस्थितियों की ओर इशारा करती है।
परिवारवाद के चश्मे से न देखा जाए
वहीं उपेंद्र कुशवाहा ने अपने बेटे दीपक प्रकाश की योग्यता पर उठ रहे सवालों पर कहा कि दीपक को केवल परिवारवाद के चश्मे से न देखा जाए। उन्होंने बताया कि उनका बेटा मेहनती है, उसने कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और राजनीतिक संस्कार भी अपने पूर्वजों से पाए हैं। उन्होंने कहा- थोड़ा समय दीजिए, वह खुद को साबित करेगा और आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा।
मेरी लोकप्रियता पर चोट ...
उपेंद्र कुशवाहा ने यह भी खुलासा किया कि पार्टी को बचाने के लिए यह कदम उठाना उनकी मजबूरी थी। यदि इस बार सही रणनीति नहीं अपनाई जाती तो दोबारा वही स्थिति बन सकती थी और यही वजह थी कि उन्हें सख्त निर्णय लेना पड़ा।उनका कहना है कि बीते वर्षों में मजबूरन पार्टी विलय जैसे कठिन फैसले लेने पड़े, जिसके कारण पार्टी शून्य पर पहुंच गई थी।उन्होंने लिखा, आज मेरे फैसले की कितनी भी आलोचना हो, दूसरा विकल्प हमें फिर से जीरो पर ले जाता।मैंने पार्टी को जीवित रखने को प्राथमिकता दी, भले ही इससे मेरी लोकप्रियता पर चोट पहुंचे।













